हरियाली तीज राजस्थान की महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व न केवल प्रकृति की हरियाली का उत्सव है, बल्कि सौभाग्य, प्रेम और पारिवारिक समर्पण का भी प्रतीक है। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला यह त्योहार विशेष रूप से सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं। राजस्थान की संस्कृति और परंपराओं में गहराई से रचा-बसा यह पर्व विशेषकर उन राज्यों में हर्षोल्लास से मनाया जाता है, जहाँ सावन की हरियाली और वर्षा का आनंद लिया जाता है।
श्रावण मास के आगमन के साथ ही राजस्थान में तीज की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। यह महीना भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना के लिए पवित्र माना जाता है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी अथक भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। हरियाली तीज इसी दिव्य मिलन का प्रतीक है, जिसे सुहागिनें अपने वैवाहिक जीवन की मंगलकामना के लिए बड़े श्रद्धा भाव से मनाती हैं। इस दिन का एक अन्य विशेष आकर्षण प्रकृति का सौंदर्य भी होता है। सावन की पहली फुहारों के साथ धरती हरी-भरी हो जाती है, खेत-खलिहान लहलहाने लगते हैं, और वृक्षों पर झूले पड़ जाते हैं। यह समय उमंग, उल्लास और प्रेम का संदेश लेकर आता है।
तीज की परंपराएँ और पूजा विधान
हरियाली तीज का पर्व नारी सौंदर्य और भक्ति का अद्भुत संगम है। इस दिन महिलाएँ विशेष रूप से सोलह श्रृंगार करती हैं। वे हरी साड़ियों, चूड़ियों और बिंदी से खुद को सजाती हैं। सोलह श्रृंगार नारी के सुहाग और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। मेंहदी इस पर्व का एक अनिवार्य अंग होती है, जिसे महिलाएँ बड़े चाव से अपने हाथों पर रचाती हैं। कहा जाता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा चढ़ता है, पति का प्रेम उतना ही प्रगाढ़ होता है।
पूजा के लिए महिलाएँ प्रातः स्नान करके माता पार्वती की मूर्ति या चित्र के सामने बैठती हैं। वे मिट्टी से बनी गौरी-शिव की प्रतिमा को सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजाती हैं। पूजा में सुहाग सामग्री जैसे चूड़ियाँ, बिंदी, काजल, सिंदूर, कंघी, महावर आदि चढ़ाए जाते हैं। कुछ महिलाएँ निर्जला व्रत रखती हैं, तो कुछ फलाहार ग्रहण करती हैं। पूजा के समय विशेष रूप से तीज माता के भजन और लोकगीत गाए जाते हैं। पूजा के पश्चात महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।
झूला उत्सव और लोकगीतों की मिठास
हरियाली तीज का सबसे बड़ा आकर्षण झूला झूलने की परंपरा है। गाँवों और शहरों में बड़े-बड़े पेड़ों की शाखाओं पर झूले बाँधे जाते हैं, जिन्हें रंग-बिरंगे फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है। महिलाएँ समूह बनाकर झूले झूलती हैं और तीज के मधुर लोकगीत गाती हैं।
“झूला झूलेली, सावन आयो रे,
घेर-घेर आई बदरिया,
पीव जी म्हारा देश आवो रे…”
यह लोकगीत नवविवाहित स्त्रियों की उस भावनात्मक स्थिति को दर्शाता है, जब वे अपने मायके में रहकर पति की प्रतीक्षा करती हैं। सावन और तीज का पर्व उनके लिए विशेष होता है, क्योंकि इस समय अधिकतर महिलाएँ अपने मायके आती हैं और परिवार के साथ इस त्योहार को हर्षोल्लास से मनाती हैं।
“ऊँचो झूला झूले रे, मोरी सखी,
घेर आयो सावन की फुहार।”
ऐसे लोकगीत न केवल त्योहार की मिठास को बढ़ाते हैं, बल्कि पारंपरिक संस्कृति को जीवंत बनाए रखते हैं।
जयपुर की तीज सवारी
राजस्थान में तीज का पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें जयपुर की तीज सवारी का विशेष महत्व है। जयपुर में तीज के दिन राजमहल से माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है, जिसमें हाथी, ऊँट, घोड़े और पारंपरिक लोक कलाकारों का भव्य जुलूस शामिल होता है। तीज माता को चाँदी की पालकी में बैठाकर पूरे शहर में भ्रमण कराया जाता है। यह शोभायात्रा सिटी पैलेस से निकलकर त्रिपोलिया गेट, छोटी चौपड़ और बड़ी चौपड़ होते हुए गणगौरी बाजार तक जाती है। इस अवसर पर हजारों लोग इस ऐतिहासिक सवारी को देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
इसके अलावा, उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर और कोटा में भी तीज महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बाजारों में विशेष रौनक होती है, मिठाइयों की दुकानों पर घेवर, बालूशाही और मालपुआ जैसी पारंपरिक मिठाइयाँ बिकती हैं। महिलाएँ मेहंदी और श्रृंगार की दुकानों पर उमड़ती हैं, जिससे पूरा माहौल उल्लास और उमंग से भर जाता है।
हरियाली तीज का स्वाद – घेवर और पारंपरिक व्यंजन
हरियाली तीज के अवसर पर विशेष रूप से घेवर बनाया जाता है, जो राजस्थान की प्रसिद्ध मिठाई है। इसे मैदा, दूध, घी और चाशनी से तैयार किया जाता है। घेवर के कई प्रकार होते हैं – सादा घेवर, मलाई घेवर और मावा घेवर। इसके अलावा, तीज के दिन मालपुआ, बालूशाही, गुजिया और बेसन के लड्डू भी बनाए जाते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि खान-पान के मामले में भी एक खास स्थान रखता है।
हरियाली तीज सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, सौंदर्य और संस्कृति का अद्भुत संगम है। यह त्योहार महिलाओं को एकजुट करता है, उन्हें अपने परिवार, पति और पारंपरिक मूल्यों के प्रति समर्पण का अवसर देता है। यह न केवल प्रकृति की हरियाली का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि भारतीय नारी के सौंदर्य और आस्था को भी प्रकट करता है। तीज का यह पर्व हमें बताता है कि जीवन में प्रेम, समर्पण और उत्सवधर्मिता कितनी आवश्यक है।