राजस्थान की रेतीली धरती पर जन्मा एक ऐसा साहित्यकार, जिसने अपने शब्दों से लोककथाओं को अमर कर दिया—विजयदान देथा। वे केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि लोककथाओं के पुनर्जन्मदाता थे। उनकी कहानियाँ राजस्थान की मिट्टी से उपजी, पर उनकी सुगंध पूरे साहित्य-जगत में फैल गई। ‘बिज्जी’ के नाम से प्रसिद्ध विजयदान देथा ने अपनी लेखनी से लोककथाओं को नया जीवन दिया, उन्हें साहित्यिक ऊंचाइयों तक पहुँचाया और यह साबित किया कि लोककथाएँ केवल कहानियाँ नहीं होतीं, बल्कि वे समाज का आईना होती हैं।
विजयदान देथा का साहित्यिक संसार इतना विस्तृत है कि उसमें राजस्थान की हर धड़कन गूंजती है। उनकी कहानियों में प्रेम भी है, विद्रोह भी, हास्य भी है और गहरी दार्शनिकता भी। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में ‘दुविधा’, ‘फितरती चोर’, ‘धरती धोरां री’ जैसी अनगिनत कहानियाँ शामिल हैं, जो लोककथाओं से प्रेरित होकर भी आधुनिक समाज से सीधा संवाद करती हैं।
उनकी एक कहानी ‘दुविधा’ पर आधारित फिल्म ‘पहेली’ में प्रेम, इच्छाओं और सामाजिक बंधनों की जटिलता को दर्शाया गया है। “सवाल ये नहीं कि कौन असली है, सवाल ये है कि कौन सच्चा है!”—यह पंक्ति उनके लेखन के सार को प्रकट करती है। उनकी कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि जीवन के गहरे प्रश्नों को भी उठाती हैं।
लोक और साहित्य का अद्भुत संगम
राजस्थान की परंपरागत कहावतों, लोकगीतों और किंवदंतियों को संजोते हुए विजयदान देथा ने उन्हें नए रूप में प्रस्तुत किया। वे कहा करते थे, “मैंने लोककथाओं को नहीं गढ़ा, लोककथाओं ने मुझे गढ़ा है।” यही कारण था कि उनका साहित्य कृत्रिमता से मुक्त था, उसमें लोकजीवन की सहजता और जीवन की सच्चाई थी।
उनकी भाषा का सौंदर्य, उनकी शैली की आत्मीयता, और उनकी कहानियों की जीवंतता पाठक को बांध लेती है। ‘ऊँट और सियार’ जैसी कहानियाँ लोककथाओं के भीतर छिपी व्यंग्यात्मक बुद्धिमत्ता को उजागर करती हैं, तो ‘संवृत द्वार’ जैसी कहानियाँ सामाजिक बेड़ियों को तोड़ने की प्रेरणा देती हैं।
विजयदान देथा की लेखनी केवल मनोरंजन के लिए नहीं थी, बल्कि वह विचारों की क्रांति थी। वे सामाजिक बदलाव के समर्थक थे और उनका साहित्य भी इसी क्रांति की मशाल था। उनकी कहानियाँ जातिवाद, पितृसत्ता, सामाजिक रूढ़ियों और अन्याय के विरुद्ध एक मजबूत आवाज थीं।
‘राजस्थान की लोककथाएँ’ संकलन में उन्होंने दिखाया कि लोककथाएँ सिर्फ किस्से नहीं होतीं, वे समाज की सोच को आकार देने का कार्य करती हैं। “किस्सा वही सफल है, जो आदमी को बदल दे!”—यह उनका दृढ़ विश्वास था, और उनकी कहानियाँ इसे चरितार्थ करती हैं।
कथा के भीतर कथा: बिज्जी की जादुई शैली
विजयदान देथा की सबसे बड़ी विशेषता उनकी कथा कहने की शैली थी। वे लोककथाओं को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करते थे, उनकी कहानियाँ अक्सर दो स्तरों पर चलती थीं—एक वह जो सतह पर दिखती थी, और दूसरी वह जो गहरे में जाकर सोचने को मजबूर कर देती थी।
उनकी कहानी ‘फितरती चोर’ में एक चोर और एक संत के बीच संवाद को इतनी कुशलता से गढ़ा गया है कि पाठक अंत तक तय नहीं कर पाता कि असली चोर कौन है। यह उनके लेखन की खासियत थी—एक साधारण-सी लगने वाली कहानी भी गहरे सामाजिक संदेश को समेटे रहती थी।
“शब्द भी एक हथियार हैं, और मैं इन्हें बेधड़क चलाता हूँ!”
विजयदान देथा अपने लेखन में बेबाक थे। वे उन विषयों पर भी लिखने से नहीं कतराते थे, जिन पर समाज बात करने से डरता था। उनकी कहानियों में स्त्री-स्वतंत्रता, प्रेम की परिभाषा, सामाजिक अन्याय और मानवाधिकारों के विषय खुलकर सामने आते हैं।
उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘दुविधा’ में भूत का प्रेम एक स्त्री के भीतर दबी इच्छाओं का प्रतीक बन जाता है। इसी तरह ‘बयान’ में उन्होंने बताया कि कैसे सत्य हमेशा सुविधा के अनुसार नहीं होता, बल्कि सत्य वही होता है जो अंतर्मन स्वीकार कर ले।
राजस्थानी भाषा का गौरव
विजयदान देथा ने न केवल राजस्थान की लोककथाओं को जीवंत किया, बल्कि उन्होंने राजस्थानी भाषा को भी प्रतिष्ठा दिलाई। वे कहा करते थे, “भाषा वही जिंदा रहती है, जिसमें लोग सपने देखते हैं।” उन्होंने राजस्थानी भाषा में 800 से अधिक कहानियाँ लिखीं, जो हिंदी और अन्य भाषाओं में भी अनूदित हुईं।
उन्होंने यह साबित कर दिया कि क्षेत्रीय भाषाएँ किसी भी अंतरराष्ट्रीय भाषा से कम नहीं होतीं, बस उन्हें सही मंच और पहचान दिलाने की जरूरत होती है। उनके इस योगदान के कारण ही राजस्थानी भाषा को साहित्य में एक नया स्थान मिला।
बिज्जी का साहित्य: कालजयी धरोहर
विजयदान देथा का साहित्य सिर्फ राजस्थान का नहीं, बल्कि पूरे भारत का सांस्कृतिक खजाना है। उनकी कहानियाँ समय के साथ और अधिक प्रासंगिक होती जा रही हैं। वे भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी कहानियाँ सदियों तक जीवित रहेंगी।
“लोग आते हैं, चले जाते हैं… लेकिन कहानी कभी नहीं मरती!”
बिज्जी ने अपनी कहानियों से यह सिद्ध कर दिया कि लोककथाएँ अमर होती हैं। उनके शब्द हमारे भीतर गूंजते रहेंगे, हमारी सोच को नई दिशा देते रहेंगे, और हमें यह याद दिलाते रहेंगे कि साहित्य केवल पढ़ने के लिए नहीं होता—वह हमें बदलने के लिए होता है।
विजयदान देथा सिर्फ एक लेखक नहीं थे, वे एक आंदोलन थे। उन्होंने लोककथाओं को एक नया रूप दिया, उन्हें साहित्यिक ऊंचाइयों तक पहुँचाया और यह सिद्ध किया कि सबसे गहरी बातें अक्सर सबसे सरल कहानियों में छिपी होती हैं। उनकी कहानियों में राजस्थान की मिट्टी की खुशबू थी, जीवन का संघर्ष था, और बदलाव की चिंगारी थी।