रूमा देवी का परिचय: संघर्ष, सृजन और प्रेरणा की एक जीवंत मिसाल

रूमा देवी का जीवन उस मशाल की तरह है, जो अंधेरों को चीरकर रोशनी का रास्ता दिखाती है। राजस्थान के बाड़मेर जिले के रेतीले धोरों में पली-बढ़ी रूमा देवी की कहानी न सिर्फ संघर्ष का सफरनामा है, बल्कि यह बताती है कि इरादों की मज़बूती से कैसे बंजर धरती पर भी फूल खिलाए जा सकते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि “ज़िंदगी की मुश्किलें तुफ़ानों की तरह आती हैं, लेकिन अगर इरादे सच्चे हों तो हर तुफ़ान एक नया किनारा लाता है।”

प्रारंभिक जीवन: ‘ख़्वाबों का बीज रेगिस्तान में बोया’

रूमा देवी का जन्म 1989 में बाड़मेर के एक साधारण परिवार में हुआ। उनका बचपन बेहद गरीबी में गुज़रा। जब वह नौ साल की थीं, तो उनकी माँ का इंतक़ाल हो गया, और बचपन का वो नर्म साया छिन गया। उनका यह दर्द बयाँ करता है:

“उम्मीद के चिराग़ को जलाए रखना,

हर आँसू के पीछे एक ख़्वाब छुपाए रखना।”

 

घर की आर्थिक हालत ने उन्हें स्कूल छोड़ने पर मजबूर किया। छोटी उम्र से ही घर का काम संभालना पड़ा, लेकिन उनके दिल में हमेशा यह हसरत रही कि वे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाएँगी।

सशक्तिकरण की शुरुआत: ‘सुई-धागे से बुने सपने’

विवाह के बाद जब वह अपने ससुराल आईं, तो उन्होंने देखा कि गाँव की महिलाएँ भी उन्हीं तकलीफों से गुज़र रही हैं, जिनका सामना उन्होंने बचपन में किया था। तभी उन्होंने तय किया कि वह कुछ ऐसा करेंगी, जिससे इन औरतों की ज़िंदगी बदल सके। उन्होंने अपनी कला को हथियार बनाया। हाथों में सुई और धागा उठाकर उन्होंने 17 महिलाओं के साथ मिलकर एक स्वयं सहायता समूह बनाया। यह शुरुआत छोटी थी, मगर उनका जज़्बा बड़ा था।

 

उन्होंने राजस्थान की पारंपरिक कढ़ाई, ब्लॉक प्रिंटिंग और हस्तशिल्प को पुनर्जीवित किया। उनकी बनाई चीज़ों में न सिर्फ कलात्मकता है, बल्कि उसमें उनकी मेहनत और सपनों की कहानी छुपी है।

कला के ज़रिए सफलता की इमारत

रूमा देवी की बनाई चीज़ें स्थानीय बाज़ारों से होते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचीं। उनके शिल्प में राजस्थान की विरासत और पारंपरिक कला की ख़ुशबू है। आज उनके साथ 30,000 से अधिक महिलाएँ जुड़ी हुई हैं, जो उनकी प्रेरणा से आत्मनिर्भर बन रही हैं।

 

सम्मान और पहचान: ‘ग़ुंचे खिले हैं मेहनत के बाग़ में’

रूमा देवी के काम को सराहा गया और उनकी मेहनत रंग लाई। उन्हें 2016 में भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी प्रेरणादायक यात्रा ने उन्हें टेड टॉक्स जैसे मंचों पर पहुँचाया। उन्होंने वहाँ अपनी बात इस अंदाज़ में रखी कि लोग उनके जज़्बे के कायल हो गए। उनकी शख्सियत इन शब्दों में बयाँ होती है:

“मेरे इरादों का क़द इतना ऊँचा है, कि हर हार भी मुझसे सहमकर गुज़रती है।”

प्रेरणा का स्त्रोत

रूमा देवी का जीवन उन लाखों महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो हालात से हार मानने के क़रीब होती हैं। उन्होंने न सिर्फ़ खुद को संवारा, बल्कि हज़ारों महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखाया। उनका कहना है कि महिलाएँ समाज की रीढ़ हैं, और अगर उन्हें सही मार्गदर्शन मिले तो वे हर मुश्किल को पार कर सकती हैं।

रूमा देवी ने यह साबित कर दिया कि असंभव कुछ भी नहीं। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इंसान के अंदर मेहनत करने का जज़्बा हो, तो वह रेगिस्तान में भी पानी की धाराएँ बहा सकता है। उनका जीवन एक प्रेरणा है और उनकी आवाज़ उन सभी के लिए एक पैग़ाम है, जो अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं।

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