लक्ष्मी निवास मित्तल का नाम सुनते ही जेहन में एक ऐसे शख्स की तस्वीर उभरती है, जिसने अपनी मेहनत, बुद्धिमत्ता और इरादे की बुलंदी से न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया। भारतीय मूल के यह महान उद्योगपति अपने कौशल, साहस और दूरदर्शिता के बल पर दुनिया के सबसे बड़े स्टील साम्राज्य के निर्माता बने। यह गाथा न केवल उनकी कारोबारी सफलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कैसे मेहनत, समर्पण और सही दृष्टिकोण से किसी भी ख्वाब को पूरा किया जा सकता है।
बाल्यकाल और प्रारंभिक जीवन: संघर्षों के साथ सफर का आगाज़
लक्ष्मी निवास मित्तल का जन्म 15 जून 1950 को राजस्थान के चुरू जिले के सार्दुलपुर नामक स्थान पर हुआ। एक साधारण मारवाड़ी परिवार में जन्मे लक्ष्मी मित्तल ने प्रारंभिक शिक्षा श्रीगंगानगर में ही प्राप्त की। उनके पिता मोहनलाल मित्तल एक छोटे व्यापारी थे, जो स्टील के व्यापार से जुड़े थे। यह व्यापार उस समय ज्यादा बड़ा या प्रतिष्ठित नहीं था, लेकिन यहीं से लक्ष्मी मित्तल के भीतर व्यवसाय की समझ और रुचि पैदा हुई।
उनका परिवार बाद में कोलकाता चला गया, जहां उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बचपन से ही लक्ष्मी के अंदर एक कारोबारी सोच और जज़्बा था। उन्होंने अपने पिता के साथ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। यही कारण है कि वे कम उम्र में ही व्यवसाय की जटिलताओं और आवश्यकताओं को समझने लगे।
लक्ष्मी मित्तल ने शुरुआत से ही अपने भीतर एक स्पष्ट उद्देश्य और अनुशासन विकसित किया। वे जानते थे कि अगर उन्हें अपनी पहचान बनानी है, तो उन्हें अपनी सीमाओं से परे जाकर सोचना होगा। उनके अंदर के यही गुण बाद में उन्हें वैश्विक कारोबारी मंच पर एक अद्वितीय पहचान दिलाते हैं।
कारोबारी सफर की शुरुआत
लक्ष्मी निवास मित्तल ने 1976 में इंडोनेशिया से अपने कारोबारी सफर की बुनियाद रखी। उनके पिता के नेतृत्व में पारिवारिक व्यवसाय भारत तक सीमित था, लेकिन लक्ष्मी ने सोचा कि अगर उन्हें विस्तार करना है, तो अपनी सोच को वैश्विक बनाना होगा। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंडोनेशिया में एक छोटे से स्टील प्लांट, पीटी इस्पात इंडो से की।
इस दौरान उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया। इंडोनेशिया में व्यापार करना आसान नहीं था। विदेशी बाजार में प्रतिस्पर्धा, स्थानीय प्रशासन की कठिनाइयां और पूंजी की कमी जैसी समस्याओं ने उन्हें घेर लिया। लेकिन लक्ष्मी मित्तल ने अपने भीतर के जज्बे और दृढ़ संकल्प से इन सभी बाधाओं को पार किया।
मित्तल स्टील: एक वैश्विक साम्राज्य का निर्माण
लक्ष्मी निवास मित्तल की पहली बड़ी सफलता 1989 में आई, जब उन्होंने पहली बार एक संघर्षरत स्टील कंपनी का अधिग्रहण किया। यह उनकी कारोबारी यात्रा का टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने महसूस किया कि स्टील उद्योग में अधिग्रहण और विलय के जरिए बड़ा और प्रभावशाली बनने की अपार संभावनाएं हैं।
1994 में उन्होंने मित्तल स्टील की स्थापना की और इसके माध्यम से कई संघर्षरत कंपनियों को खरीदा। उनका सबसे बड़ा कदम 2006 में आर्सेलर का अधिग्रहण था, जो उस समय यूरोप की सबसे बड़ी स्टील कंपनी थी। इस अधिग्रहण के बाद मित्तल स्टील और आर्सेलर का विलय हुआ और “आर्सेलर मित्तल” दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गई।
आर्सेलर मित्तल का मुख्यालय लक्ज़मबर्ग में स्थित है और इसका व्यापार 60 से अधिक देशों में फैला हुआ है। यह कंपनी स्टील उत्पादन और खनन में अग्रणी है।
वैश्विक दृष्टिकोण और कारोबारी सिद्धांत
लक्ष्मी मित्तल ने अपने व्यवसाय को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए कई अनूठी रणनीतियां अपनाईं। उनका वैश्विक दृष्टिकोण और अधिग्रहण की नीति उनकी सफलता की प्रमुख कुंजी रही।
1. विलय और अधिग्रहण की नीति: लक्ष्मी मित्तल ने संघर्षरत कंपनियों को मुनाफे में बदलने की कला में महारत हासिल की। वे ऐसी कंपनियों को खरीदते, जो आर्थिक रूप से कमजोर थीं, लेकिन जिनमें विकास की संभावना थी।
2. वैश्विक विस्तार: मित्तल ने हमेशा सीमाओं से परे सोचा। वे अपने कारोबार को दुनिया के हर कोने में ले गए।
3. नवाचार और तकनीकी विकास: उन्होंने आधुनिक तकनीकों को अपनाया और अपने उद्योग को पर्यावरण-अनुकूल बनाया।
4. संकल्प और नेतृत्व: लक्ष्मी मित्तल का मानना था कि एक सच्चा नेता वही है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी सही निर्णय ले सके।
चुनौतियां और विवाद
लक्ष्मी मित्तल का सफर सिर्फ कामयाबियों से नहीं भरा था। उन्हें कई बार सख्त इम्तिहानों का सामना करना पड़ा। 2002 में कजाखस्तान में उनकी कंपनी पर श्रमिक सुरक्षा की अनदेखी के आरोप लगे। इसके अलावा, उन्हें कई बार राजनीतिक और सामाजिक विवादों का सामना भी करना पड़ा।
ब्रिटेन में उनके एक आलीशान मकान की खरीदारी ने भी काफी सुर्खियां बटोरीं। इसे “टाजमहल ऑन द थैम्स” कहा गया। इस मकान की कीमत £70 मिलियन थी, जो उस समय ब्रिटेन का सबसे महंगा घर था।
हालांकि, लक्ष्मी मित्तल ने हर बार इन चुनौतियों को सकारात्मक दृष्टिकोण और व्यावसायिक कुशलता से पार किया।
व्यक्तिगत जीवन और मूल्यों का महत्व
लक्ष्मी मित्तल का व्यक्तिगत जीवन उनकी सादगी और पारिवारिक मूल्यों का प्रतीक है। वे अपने परिवार के प्रति बेहद समर्पित हैं। उनकी पत्नी उषा मित्तल, उनके बेटे आदित्य और बेटी वनीषा उनके व्यवसाय और जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
2004 में उनकी बेटी वनीषा मित्तल की शादी ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। यह शादी फ्रांस के प्रसिद्ध वर्साय पैलेस में हुई थी और इसे दुनिया की सबसे महंगी शादियों में गिना जाता है।
समाजसेवा और परोपकार
लक्ष्मी निवास मित्तल न केवल एक सफल उद्योगपति हैं, बल्कि एक नेकदिल इंसान भी हैं। उन्होंने समाजसेवा के कई अहम काम किए है।
शिक्षा: भारत में उन्होंने कई शैक्षिक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान की।
स्वास्थ्य: उन्होंने लंदन में ग्रेट ओरमंड स्ट्रीट हॉस्पिटल के पुनर्निर्माण के लिए बड़ी राशि दान की।
खेल: उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए मित्तल चैंपियंस ट्रस्ट की स्थापना की।
लक्ष्मी निवास मित्तल भारतीय मूल के उन चंद उद्योगपतियों में से हैं, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई। वे न केवल भारत का गौरव हैं, बल्कि वे हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा हैं, जो अपने सपनों को साकार करना चाहता है।
लक्ष्मी निवास मित्तल का जीवन यह साबित करता है कि मेहनत, साहस और दूरदर्शिता से कोई भी इंसान अपने सपनों को साकार कर सकता है। उनकी सफलता की कहानी हमें सिखाती है कि असंभव कुछ भी नहीं है। उनका जीवन उन सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी हार मानने की बजाय आगे बढ़ने का हौसला रखते हैं।
आज लक्ष्मी मित्तल सिर्फ एक कारोबारी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। उनका जीवन एक ऐसा उज्ज्वल उदाहरण है, जो यह दिखाता है कि अगर आपमें जज्बा और साहस है, तो दुनिया की कोई भी बाधा आपके रास्ते में नहीं आ सकती।