अलगोजा: राजस्थान की रेत में बसी सुरों की सरगम

राजस्थान की मिट्टी में कण-कण संगीत से सराबोर है। यहाँ का हर किला, हर गली और हर रेगिस्तानी टीला अपनी ही एक अनसुनी धुन बुनता है। इसी सुरमयी धरती का एक बेजोड़ लोक वाद्य है अलगोजा, जिसे जब कोई कुशल कलाकार बजाता है, तो लगता है जैसे रेगिस्तान खुद गुनगुना उठा हो। यह वाद्य यंत्र न केवल संगीत प्रेमियों के लिए एक मधुर अनुभव है, बल्कि राजस्थान की लोकसंस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा भी है।

अलगोजा: एक अनूठा लोक वाद्य

अलगोजा बाँस से बनी एक युग्म बांसुरी है, जिसे बजाने वाले कलाकार एक साथ मुँह से फूँकते हैं। इसका एक छोर मेलोडी (मुख्य धुन) निकालता है, तो दूसरा सुर की स्थिरता बनाए रखता है। यह वाद्य मुख्य रूप से राजस्थान, पंजाब, सिंध और गुजरात के लोक संगीत में अपनी अलग पहचान रखता है।

राजस्थान में अलगोजा का उपयोग विशेष रूप से लोकनृत्य, गायन, और रेगिस्तानी संगीत में किया जाता है। यह वाद्य अपने स्वर में एक रहस्यमय मिठास और गहराई समेटे हुए है, जो सुनने वाले को एक अलग ही दुनिया में ले जाती है।

अलगोजा की धुनों में रेत की कहानी

अलगोजा की धुनों में राजस्थान के लोकजीवन की कहानियाँ छिपी होती हैं। जब किसी वीरान रेगिस्तान में ऊँटों का काफिला गुजरता है, जब कोई विरहन अपने प्रियतम के लौटने की राह देखती है, या जब कोई गड़ेरिया अपनी भेड़ों के संग निर्जन पहाड़ियों में सफर करता है – इन सभी भावनाओं को अलगोजा की मधुर तानें व्यक्त कर देती हैं।

लोकगीतों में अलगोजा:

1. “केसरिया बालम आवो नी…” – जब यह गीत अलगोजा के सुरों में घुलता है, तो लगता है जैसे राजस्थान की मिट्टी खुद पुकार रही हो।

2. “घिर घिर आवे बदरिया…” – इस गीत में अलगोजा की मीठी तानें मानसून की प्रतीक्षा को व्यक्त करती हैं।

3. “चूड़ी मंगाई ले सा…” – इस लोकगीत में अलगोजा के स्वर प्रेम और उमंग को जीवंत कर देते हैं।

अलगोजा की अनूठी विशेषताएँ

  • इसे बजाने के लिए श्वास-नियंत्रण का जबरदस्त अभ्यास जरूरी होता है।
  • यह शुद्ध प्राकृतिक ध्वनि उत्पन्न करता है, जो किसी भी कृत्रिम ध्वनि से अधिक मधुर होती है।
  • राजस्थान की लोकसंस्कृति में यह प्रेम, बिछोह और प्रकृति के भावों को व्यक्त करने का माध्यम है।

राजस्थान के प्रसिद्ध अलगोजा कलाकार

राजस्थान में कई प्रतिभाशाली कलाकार हुए हैं, जिन्होंने अलगोजा की धुनों से न केवल देश, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई है।

1. रामनाथ चौधरी (पद्म पुरस्कार से सम्मानित कलाकार)

रामनाथ चौधरी को अलगोजा के श्रेष्ठतम कलाकारों में गिना जाता है। पद्म पुरस्कार से सम्मानित इस महान कलाकार ने राजस्थान के पारंपरिक संगीत को ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनकी अलगोजा की धुनों में राजस्थान की आत्मा गूंजती थी।

विशेषताएँ:

  • शास्त्रीय और लोकसंगीत दोनों में निपुणता।
  • कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलगोजा प्रस्तुत किया।
  • राजस्थान के लोकसंगीत को संरक्षित और प्रचारित करने में अहम योगदान।

2. घोघे खां (बाड़मेर)

घोघे खां का नाम अलगोजा वादन में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। वे 1982 के एशियाई खेलों में अलगोजा बजाकर भारत का नाम रोशन कर चुके हैं। इतना ही नहीं, जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी के विवाह का आयोजन हुआ, तब घोघे खां ने अलगोजा की मधुर तानें छेड़ी थीं।

विशेषताएँ:

  • अलगोजा की धुनों से शाही आयोजनों को सजाने वाले कलाकार।
  • राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित।
  • बाड़मेर की लोकसंगीत परंपरा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका।

3. उस्ताद खमीसु खान

उस्ताद खमीसु खान को अलगोजा के जादूगर के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपनी साधना और कला से इस वाद्य को अभूतपूर्व ऊँचाइयाँ दीं। उनकी धुनों में सूफी संगीत का रंग झलकता है और श्रोताओं को एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

विशेषताएँ:

  • सूफी संगीत में अलगोजा के प्रयोग को लोकप्रिय बनाया।
  • पारंपरिक और समकालीन दोनों शैली में निपुण।
  • अलगोजा को भारतीय शास्त्रीय संगीत से जोड़ने का प्रयास किया।

4. उस्ताद मिश्री खान जमाली

उस्ताद मिश्री खान जमाली का नाम अलगोजा के महानतम कलाकारों में गिना जाता है। उनका संगीत राजस्थान की मिट्टी की महक लिए होता था। उन्होंने अलगोजा के साथ कई तरह के प्रयोग किए, जिससे इस वाद्य को नई पहचान मिली।

विशेषताएँ:

  • शुद्ध राजस्थानी लोकधुनों में निपुणता।
  • अलगोजा वादन में अद्वितीय शैली विकसित की।
  • लोकसंगीत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किया।

5. हसन खान लंगा (जैसलमेर)

राजस्थान के जैसलमेर जिले से ताल्लुक रखने वाले हसन खान लंगा को अलगोजा के श्रेष्ठ कलाकारों में गिना जाता है। लंगा समुदाय से आने वाले हसन खान ने अलगोजा को पारंपरिक शैली में ही नहीं, बल्कि आधुनिक मंचों पर भी प्रस्तुत किया है। उनकी धुनों में राजस्थान के थार की रूह बसती है।

विशेषताएँ:

  • पारंपरिक राजस्थानी लोकगीतों में अलगोजा का अनोखा प्रयोग
  • जैसलमेर के लोक महोत्सवों में उनकी प्रस्तुतियाँ मशहूर हैं
  • भारत के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं

6. रोशन खान (बाड़मेर)

बाड़मेर के इस प्रतिभाशाली कलाकार ने अलगोजा को एक नई ऊँचाई दी है। उनकी प्रस्तुतियाँ कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हुई हैं। उन्होंने अलगोजा के सुरों को कई आधुनिक फ्यूज़न प्रयोगों से जोड़ा, जिससे यह वाद्य नई पीढ़ी को भी आकर्षित करने लगा।

विशेषताएँ:

  • पारंपरिक राजस्थानी संगीत के साथ अलगोजा का आधुनिक मिश्रण
  • कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में उनका योगदान
  • युवा कलाकारों को इस वाद्य की शिक्षा देने में भी सक्रिय

7. अनवर खान मांगणियार (जैसलमेर)

मांगणियार समुदाय राजस्थान के सबसे प्राचीन संगीत परंपराओं को जीवंत रखने के लिए प्रसिद्ध है। अनवर खान मांगणियार इस परंपरा को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कलाकारों में से एक हैं। उनकी अलगोजा की धुनें मांड और पनिहारी जैसे लोकगीतों के साथ सम्मिलित होकर जादू बिखेरती हैं।

विशेषताएँ:

  • पारंपरिक राजस्थानी संगीत में गहरा योगदान
  • कई संगीत महोत्सवों में हिस्सा लिया
  • उनकी धुनों में थार की विरह वेदना स्पष्ट झलकती है

8. गुलाब खान लंगा (पोकरण)

गुलाब खान लंगा का नाम भी अलगोजा के सबसे बड़े कलाकारों में शुमार किया जाता है। उनका संगीत ठेठ लोक शैली में है, जिसमें राजस्थान के पारंपरिक सुरों की महक बसती है। उनकी अलगोजा की धुनें सुनने वालों को रेगिस्तान की शांति और उसकी कठोरता दोनों का अहसास कराती हैं।

विशेषताएँ:

  • शुद्ध लोकधुनों में निपुणता
  • देशभर के लोक संगीत महोत्सवों में भाग लिया
  • अपनी अगली पीढ़ी को इस वाद्य में प्रशिक्षित करने में जुटे

संरक्षण और भविष्य

आज के इलेक्ट्रॉनिक संगीत युग में पारंपरिक वाद्ययंत्रों को सहेजना एक चुनौती बनता जा रहा है। हालांकि, कुछ लोककलाकार और संगीत संस्थाएँ इसे जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं। अगर युवा पीढ़ी इसे अपनाए, तो यह लोक धरोहर आने वाले समय में भी अपनी मधुरता बनाए रखेगी।

अलगोजा केवल एक वाद्य यंत्र नहीं, बल्कि राजस्थान की रूह की आवाज़ है। इसकी धुन में वह मिठास है, जो रेगिस्तान के सूखेपन को भी संगीतमय कर देती है। जब भी अलगोजा की धुन गूंजती है, तो लगता है जैसे थार की हवाओं में किसी पुराने प्रेमी की यादें बिखर गई हों। यही तो है राजस्थान का लोकसंगीत – शाश्वत, अनमोल और आत्मा को छू लेने वाला।

लेख – बाबूलाल गोदारा, बाड़मेर, राजस्थान

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